उम्मीद के मुताबिक अमेरिका ने संकेत दे दिये हैं कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर रोक लगाने के मकसद से लागू पेट्रोलियम कारोबार पर प्रतिबंध से उपजे हालात में वह भारत की मदद नहीं कर सकता। यानी वह भारत द्वारा ईरान से तेल खरीदना बंद करने के बाद सस्ते तेल की भरपाई सुनिश्चित करने में सहयोग नहीं करेगा। बीते सप्ताह इस खाड़ी देश से पेट्रोलियम पदार्थों की खरीद स्थगित करने के बाद भारत अपनी ?ऊर्जा जरूरतों की चुनौती से जूझ रहा है जो कुछ समय की मोहलत समाप्त होने के बाद पैदा हुई हैं। अमेरिका अपने कूटनीतिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिये उन देशों पर दबाव बना रहा है जो ईरान से कच्चा तेल खरीदते हैं। भारत को दस फीसदी कच्चे तेल की ?आपूर्ति ईरान से होती थी। महत्वपूर्ण यह था कि ईरान भारत को कई तरह की रियायतें देता रहा है,?जिसमें भारतीय मुद्रा में भुगतान, तेल आपूर्ति में बीमा तथा दो माह तक भुगतान करने की छूट भी शामिल रही है। अब हमारी समस्या यह है कि सऊदी अरब, कुवैत, इराक तथा अमेरिका आदि आपूर्तिकर्ता देश भारत को ईरान जैसी आकर्षक शर्तों में कच्चा तेल देने को तैयार नहीं हैं। भारत चीन के बाद ईरान से ज्यादा कच्चा तेल खरीदने वाला दूसरा देश है। चीन भी अमेरिकी दबाव के चलते नयी समस्याओं से दो चार है। ट्रंप प्रशासन के एकतरफा फैसले के कारण चीन भी वैकल्पिक रास्ता तलाश रहा है। दरअसल, ऐसे चुनौतीपूर्ण हालात में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा पेट्रोलियम पदार्थों का खरीदार होने के नाते भारत की चिंताओं को समझा जा सकता है। जिसके मुकाबले के लिये बेहतर विकल्प तलाशना और उचित सौदा करना हमारा हक भी है। इस बात से अमेरिकी प्रशासन को अवगत कराना चाहिए। जिसके लिये अमेरिका को अपनी स्थिति समझाते हुए, उस पर कूटनीतिक दबाव बनाने की जरूरत है।हालांकि इस समय देश आम चुनावों के मूड में है और सत्ता में लौटने के लिये प्रयास करना सत्तारूढ़ गठबंधन की प्राथमिकता है। मगर देश के आर्थिक हितों को प्राथमिकता देने के लिये कूटनीतिक प्रयासों में तेजी लानी चाहिए। अमेरिका की कूटनीतिक महत्वाकांक्षाओं के बीच वैकल्पिक रास्ता तलाशने की जरूरत है, जिसमें अधिक विलंब न हो। अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के निष्कर्ष बता रहे हैं कि लगातार कच्चे तेल के दामों में वृद्धि से भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये चुनौती पैदा हो सकती है।?नि:संदेह महंगे क्रूड आयल के आयात से कालांतर देश?के करोड़ों उपभोक्ताओं को तेल की तपिश महसूस करनी पड़ सकती है। इस बाबत अमेरिकी वाणिज्य सचिव बिल्बर रॉस ने सफाई दी है कि अमेरिकी सरकार निजी लोगों को बाध्य नहीं कर सकती कि वे भारत को रियायती दरों में तेल दें। साथ यह?भी संकेत दिया है कि अमेरिका उन देशों को प्रतिबंध में रियायत दे सकता है जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खात्मे के प्रयासों में सहयोग करेंगे। वहीं दूसरी ओर भारत सरकार वैकल्पिक स्रोतों से आपूर्ति बहाल करने की कोशिश में है। नि:संदेह वैश्विक हालात में भारत अमेरिका पर दबाव बनाने की कोशिश नहीं कर सकता, मगर अपने हितों की अनदेखी भी नहीं की जानी चाहिए। ऐसे में अमेरिका पर कूटनीतिक दबाव बनाने की पहल तो की ही जानी चाहिए। फिलहाल अमेरिका और ईरान के बीच जैसे टकराहट के हालात बन रहे हैं और यदि इसका प्रभाव कच्चे तेल की वैश्विक आपूर्ति पर पड़ता है तो निश्चित रूप से भारत की समस्याएं भी बढ़ सकती हैं। विश्व बाजार में पेट्रोलियम पदार्थों की आपूर्ति बाधित होने से इसके दामों में उछाल आता है तो भारतीय ऊर्जा जरूरतों के लिये नया संकट खड़ा हो सकता है,?जिसका गहरा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर?भी पड़ेगा। जाहिर है महंगाई बढऩे से जनाक्रोश का सामना आने वाली सरकार को भी करना पड़ेगा।