रुचिकर कार्य में असंभव भी संभव
आजकल लोगों को नौकरी में जल्दी थकान हो जाती है। थकान के चलते न ही वे अपने काम पर ध्यान दे पाते हैं, न ही परिवार पर। व्यक्ति की थकान का खमियाजा सभी को उठाना पड़ता है। अक्सर थकान का कारण नींद की कमी, अधिक परिश्रम या उम्र बढऩे को बताया जाता है। पर क्या सच में ऐसा होता है? यदि ऐसा होता तो 90 वर्ष के माइकल डेबेकी इतनी उम्र में भी लोगों की हार्ट की सर्जरी नहीं कर रहे होते। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई हजार लोगों के ऑपरेशन किए और व्यावहारिक दृष्टि से हार्ट बाईपास सर्जरी का आविष्कार किया। हाल ही में एप्पल कम्पनी के सीईओ टिम कुक ने कहा है, ‘आप जिस चीज से प्यार करते हैं, उसी को पेशा बनाइए, काम फिर काम नहीं रह जाएगा।Ó क्योंकि यदि व्यक्ति मनपसंद काम करता है तो यह बात उसके दिमाग में ही नहीं आती कि उसे थकान भी हो रही है।
यह सच है। व्यक्ति जब अपने पसंद के कार्य को ही अपनी रोजी -रोटी का साधन बना लेता है तो उसे दिन-रात और थकान कुछ महसूस नहीं होता। असंख्य वैज्ञानिकों, चित्रकारों एवं कलाकारों ने अहर्निष अपनी पसंद के काम को किया और बेतहाशा प्रसिद्धि एवं दौलत अर्जित की। जब व्यक्ति अपनी पसंद के कार्य को करता है तो वह दोगुनी ऊर्जा और उत्साह के साथ काम में लग जाता है। उसकी ऊर्जा एवं उत्साह कार्य को सफलता की ओर ले जाते हैं। कार्य सफल होने पर व्यक्ति का उत्साह चरम पर पहुंच जाता है। सफलता व्यक्ति को थकान महसूस नहीं होने देती। व्यक्ति के अंदर के सकारात्मक हार्मोन खुशी के पलों में सक्रिय हो जाते हैं और व्यक्ति के अंदर नकारात्मक तत्वों को उत्पन्न नहीं होने देते।
ग्यारह वर्ष की आयु में एक दिन सरोजिनी नायडू बीज गणित का कोई सवाल हल कर रही थीं। अनेक प्रयत्नों के बावजूद भी प्रश्न उनकी समझ में नहीं आया। खीझ कर सरोजिनी नायडू ने बीज गणित की पुस्तक एक तरफ रख दी। सवाल हल करते-करते उन्हें न केवल थकान महसूस होने लगी बल्कि वे नींद के झोंके भी ले रही थीं। कुछ देर बाद जब वे जागीं तो उन्होंने कॉपी पर अपने मन से थीं। रुचि के अनुसार पढऩा तो और भी मुश्किल था। लेकिन सरोजिनी नायडू सौभाग्यशाली रहीं। उनके पिता को जब यह ज्ञात हुआ कि सरोजिनी का मन गणित व विज्ञान में कम और साहित्य में अधिक लगता है तो उन्होंने उसे एक अलग कमरा उपलब्ध करा दिया और मनपसंद कार्य करने के लिए छोड़ दिया।
इस बीच उन्होंने पर्याप्त साहित्यिक ज्ञान भी अर्जित कर लिया था। शैली, ब्राउनिंग और टेनिसन की कविताएं पढ़ते-पढ़ते वे अत्यंत भावविभोर हो उठती थीं और उनकी कलम स्वत: ही कागजों को कविताओं से रचने लगती थी। तेरह वर्ष की आयु में उन्होंने 1300 पंक्तियों की लंबी कविता लिखकर सबको चकित कर दिया। एक दिन गोपालकृष्ण गोखले उनसे बोले, ‘सरोजिनी तुम पर सरस्वती की असीम कृपा है। तुम यहां मेरे साथ खड़ी हो जाओ और इन तारों व पर्वतमालाओं को साक्षी बनाकर अपने स्वप्न, गीत, विचार और जीवन-आदर्श सभी कुछ भारत माता को समर्पित कर दो। इस पहाड़ की चोटी से अडिग रहने की प्रेरणा ग्रहण करो और भारत के हजारों गांवों में फैले सुप्त मानव को जगाओ। तुम्हारी कविता सार्थक हो जाएगी।Ó
गोपाल कृष्ण गोखले के इन शब्दों ने सरोजिनी नायडू में उत्साह व आत्मविश्वास का संचार कर दिया। वे राष्ट्र जागरण का मंत्र लेकर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ीं और उन्होंने राजनीति में आकर भारतीय स्त्रियों को जागरूक किया। वे स्वतंत्र भारत की पहली महिला राज्यपाल बनीं। एक बार किसी ने उनसे पूछा कि तुम लेखन के साथ इतने काम करते-करते कभी थकान महसूस नहीं करतीं। इस पर वे मुस्कराकर बोलीं, ‘थकान तो तब महसूस हो, जब मैं कोई भारी काम करूं। मैं तो अपनी रुचि के काम करती हूं। इसमें थकना क्या और थकान क्या?Ó
दार्शनिक प्लेटो भी कहते थे कि हर इनसान एक चीज़ अच्छी तरह करने में सक्षम होता है। व्यक्ति को अपनी ऊर्जा, विचारों और श्रम को उसी स्थान पर लगाना चाहिए जहां पर उसे रुचिकर लगे। जो भी कार्य हमें प्रिय लगता है, हमें उसमें घंटों तक का पता नहीं चलता। वहीं अप्रिय कार्य को करते हुए पांच मिनट भी भारी लगते हैं।
असफलता कुछ और नहीं केवल वह कार्य है जो हमें रुचिकर नहीं। जो रुचिकर होता है, उसमें असफलता का अहसास ही नहीं होता, या ये कहें कि वहां असफलता टिकती ही नहीं। पसंद के काम में लगे लोग असफलता को सफलता में, असंभव को संभव में और अंधकार को प्रकाश में बदलना जानते हैं। यकीन मानिए वे ऐसा करके ही दम लेते हैं और प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंच जाते हैं।
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