नई दिल्ली, जैसे-जैसे सूरज ढलता जाता है और घंटियां बजने लगती हैं, एक उथल-पुथल सी शुरु हो जाती है, तीर्थयात्री उत्तराखंड के चार धामों में से एक बदरीनाथ में कतारबद्ध हो जाते हैं। यहां होने वाली आरती का नजारा देखने वाला होता है। हाथों में बड़े-बड़े अग्नी प्रज्वलित दिये लेकर पुजारी पवित्र मंत्रों के उचारण करते हैं। बदरीनाथ में करोड़ों हिंदुओं की आस्था है। यहां की आरती का भी बड़ा महत्व है, लेकिन इस बार प्रार्थना करने के साथ ही भक्तों के मन में एक प्रश्न भी होगा कि आरती ‘पवन मंडल सुगंध शीतल’ किसने लिखी थी। दरअसल, अभी तक माना जाता है कि करीबन 150 साल पहले इस आरती की रचना चमोली जिले के नदंप्रयाग के रहने वाले मुस्लिम बदरुद्दीन ने की थी।
आगे बढ़ने से पहले आरती की कुछ पंक्तियां पढ़ लेते हैं।
‘पवन मंद सुगंध शीतल हेम मंदिर शोभितम् ।
निकट गंगा बहत निर्मल बदरीनाथ विश्वंभरम, श्री बदरीनाथ विश्वंभरम ।।
शेष सुमरिन करत निशदिन धरत ध्यान महेश्वरम
वेद ब्रहमा करत स्तुति श्री बदरीनाथ विश्वंभरम, श्री बदरीनाथ विश्वंभरम।।
आरती की रचना को लेकर विवाद
भारतीय जनता पार्टी सरकार ने इसके रचयिता का ऐलान कर नई बहस छेड़ दी है। सरकार का कहना है कि एक स्थानीय लेखक धान सिंह बर्थवाल ने यह आरती लिखी है। जबकि सालों से यह मान्यता है कि चमोली में नंदप्रयाग के एक पोस्टमास्टर फखरुद्दीन सिद्दीकी ने यह आरती लिखी थी। सिद्दीकी भगवान बदरी के भक्त थे और लोग बाद में उन्हें ‘बदरुद्दीन’ बुलाने लगे थे।
आरती की पांड़लिपि की कार्बन डेटिंग के परिणाम से साबित हो गया है कि यह वर्ष 1775 के आसपास की है और धन सिंह इसी दौर के हैं, जबकि बदरुद्दीन उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के हैं। धन सिंह के वंशजों ने पांडुलिपि की प्रति मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भेंट भी की है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे यह साबित हुआ है कि हमारे पूर्वज उस वक्त भी जागरुक थे।
स्व. धन सिंह के वंशजों ने इतनी पुरातन सम्पदा को संजोकर रखा, यह दूर दृष्टि का परिचायक है। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट ने बताया कि पिछले साल विजराणा गांव के रहने वाले स्व. धन सिंह के परपोते महेंद्र सिंह ने सचिव पर्यटन दिलीप जावलकर को पांडुलिपि सौंपकर दावा किया था कि आरती उनके परदादा ने लिखी है।
बदरुद्दीन के रिश्तेदारों के पास नहीं सबूत
धन सिंह के परपोते महेंद्र सिंह बर्थवाल हाल ही में प्रशासन के पास आरती की हस्तलिपि लेकर पहुंचे। कार्बन डेटिंग टेस्ट के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ऐलान किया कि यह हस्तलिपि 1881 की है, जब यह आरती चलन में आई थी। बदरुद्दीन का परिवार ऐसा कोई सबूत दे नहीं सका, इसलिए बर्थवाल परिवार के दावों को सच मान लिया गया है।
हालांकि, 1889 में प्रकाशित एक किताब में यह आरतील है और बदरुद्दीन के रिश्तेदारों को इसका संरक्षक बताया गया है। यह किताब अल्मोडा के एक संग्रहालय में रखी है। उसके मालिक जुगल किशोर पेठशाली ने कहरा कि अल-मुश्तहर मुंसी नसीरुद्दीन को किताब का संरक्षक बताया गया है जो हिंदू धर्म शास्त्र स्कंद पुराण का अनुवाद है और इसके आखिरी पेज में आरती लिखी है।
विश्षज्ञों ने किए सरकार पर सवाल
विशेषज्ञों ने आरती के लेखक का पता करने के लिए सरकार पर सवाल किए कि आखिर कैसे वह कार्बन डेटिंग पर विश्वास कर सकते है। आईआईटी रुड़की के असोसिएट प्रफेसर एएस मौर्या ने कहा है कि कार्बन डेटिंग से सटीक साल का पता नहीं लगता है। उन्होंने कहा कि इसकी अरसली उम्र डेटिंग टेस्ट में मिले नतीजों से 80 साल आगे पीछे हो सकती है। साथ ही उन्होंने कहा कि यह साफतौर पर कहा जा सकता है कि बर्थवाल हस्तलिपि 1881 में ही लिखी गई थी। दूसरी ओर, कार्बन डेटिंग करने वाले उत्तराखंड स्पेस ऐप्लिकेशन सेंटर के निदेशक एमपीएस बिश्ट का दावा है कि टेस्ट के नतीजे एकदम सटीक हैं।।
पंड़ित बोले बदरुद्दीन के बारे में बताते थे उनके दादा
एक पुजारी पंडित विनय कृष्ण रावत ने कहा कि उनके दादा बदरुद्दीन को जानते थे, वास्तव में हर कोई इस बात से आश्वस्त नहीं है। उन्होंने कहा कि बदरुद्दीन ने मेरे दादाजी को बताया कि उन्होंने आरती लिखी थी। मेरे दादाजी अक्सर बात करते थे कि आखिर कैसे कोई मुस्लिम व्यक्ति रुद्राक्ष पहनकर बदरीनाथ मंदिर के चरणों में भक्ति में खो सकता है। बद्री-केदार मंदिर समिति (BKTC) के पुजारी, जो मंदिर का प्रबंधन करते हैं, ने यह भी कहा कि वर्षों से आम सहमति है कि बदरुद्दीन लेखक हैं।
उन्होंने कहा कि बदरुद्दीन के वंशज निराश हैं कि उन्हें ‘परिवार की विरासत को लूट लिया गया है’। उनके परपोते अयाजुद्दीन ने कहा, ‘वह भगवान बदरीनाथ के लिए समर्पित हैं, यही वजह है कि परिवार ने उनके विश्वास को जारी रखा है।’ अयाज़ुद्दीन रामलीला में मेघनाद का किरदार निभाते हैं। हर साल उनके चाचा रामलीला में संस्कृत श्लोकों का पाठ करते हैं और दिवाली और ईद पर अपने घरों में दिए जलाकर त्यौहार मनाते है।