यह महंगाई नहीं, लूट है- लोकदल

केंद्र और प्रदेश की सरकार आपके तो दोनों हाथों में मलाई है, बदनसीब तो देश की जनता है जिधर देखो उधर महंगाई ने हाहाकार मचा रखा है- सुनील सिंह

पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों पर केन्द्र सरकार को घेरते हुए लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील सिंह ने कहा कि जनता जानना चाहती है कि अच्छे दिन कैसे होते है? कब तक रोना रोते रहोगे ये पब्लिक है सब जानती है। आपने क्या किया ये बताइये और आपके गलत रणनीति के कारण आज देश बर्बाद हो रहा है केंद्र और प्रदेश सरकार अपनी कमियों को छुपाने के लिये दूसरे पर दोषारोपण बंद करें। अब जब केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार के राज में तेल के दाम आसमान छू रहे हैं तो भाजपा के पास कोई जवाब नहीं। केंद्र की भाजपा सरकार और प्रदेश की सरकार को जन विरोधी बताते हुए कहा कि ऐसे हालात में भी हर रोज डीजल और पेट्रोल के दाम बढ़ाकर जनता पर बोझ डाला जा रहा है। मुनाफाखोरी जबरन वसूली की जा रही है। उन्होंने कहा कि पिछले 10 दिनों के अंदर 10 बार पेट्रोल और डीजल के दाम पूरे देशभर में बढ़ रहे हैं। पेट्रोल और डीजल और गेसने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। पेट्रोलियम पदार्थों के बढ़ते दामों से आम जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दैनिक जरूरतों के चीजों पर इसका असर देखा जा सकता है। पेट्रोल में 22 पैसे तो वहीं डीजल में 24 पैसे की बढ़ोतरी हुई है। इसी के साथ पेट्रोल 88.28 रुपए और डीजल 86.85 रुपए प्रति लीटर हो गया है। 
केन्द्र में तानाशाही का सरकार है। लोगों का गुजर-बसर मुश्किल हो रहा हो, तब किसी भी सरकार को लोगों पर भारी कर लगाने का कोई अधिकार नहीं है। सस्ता पेट्रोल और डीजल के वायदे कर सत्ता पर काबिज हुई। मोदी सरकार यदि पिछले सात वर्षों के दौरान अपने बढ़ाए उत्पाद शुल्क को ही वापस ले ले तो पेट्रोल और डीजल दोनों तुरंत 50 रुपये प्रति लीटर से नीचे आ जाएंगे। विपदा के वक्त पेट्रोल-डीजल पर टैक्स लगाकर लूटना ‘आर्थिक देशद्रोह’ है।
26 मई 2014 को जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता संभाली थी तब से प्रतिदिन महंगाई आसमान छू रही है। फ़रवरी 2015 में दिल्ली चुनावों से पहले पीएम मोदी ने एक रैली में कहा था, “अगर नसीब के कारण पेट्रोल-डीज़ल के दाम कम होते हैं तो बदनसीब को लाने की ज़रूरत क्या है?“ केंद्र और प्रदेश की सरकार आपके तो दोनों हाथों में मलाई है, बदनसीब तो देश की जनता है जिधर देखो उधर महंगाई ने हाहाकार मचा रखा है। अगर सरकार को जनता से जरा भी हमदर्दी या उसकी तकलीफों का जरा भी अहसास हो तो वह अपने खुफिया तंत्र से यह पता लगा सकती है कि कीमतों में उछाल आने की प्रक्रिया कहां से शुरू हो रही है और इसका फायदा किस-किसको मिल रहा है। यह पता लगाने में हफ्ते-दस दिन से ज्यादा का समय नहीं लगता। 

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