कहीं ऑक्सीजन के लिए मारामारी है. कहीं बेड के लिए मारामारी है.. कहीं इलाज के लिए मारामारी है.

कहीं ऑक्सीजन के लिए मारामारी है. कहीं बेड के लिए मारामारी है.. कहीं इलाज के लिए मारामारी है.. और कहीं इलाज के लिए मारामारी है और कहीं दवाईयों के लिए… देश धर्म के अंधे चश्मे में उलझा रह गया और धर्म ने देश को धर्मसंकट में धकेल दिया. सारे संकट एक साथ आ खड़े हुए. प्रधानमंत्री सीधा तो सीधा तो नहीं कहते हैं.. लेकिन उनकी बातों का लब्बोलुआब यही है कि ये बीमारी आपकी है.. आप ही देखों… विपक्ष केन्द्र को घेरने की जिम्मेदारी पूरी कर रहा है… राजनीति चेहरा चमकाने में लगी है. जो सबसे जरूरी काम है बस वहीं नहीं हो पा रहा है..
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आज के दौर में ऑक्सीजन सिलेंडर पाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है… उत्तर प्रदेश में तो हाल और भी बुरा है. लेकिन सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि देश में ऑक्सीजन की कमी है… एक दिन पहले ही योगी ने अखबारों ने बड़े बड़े एडवरटाइजमेंट करवाए… आज सरकार ने दिल थोड़ा और बड़ा किया तो अंतिम संस्कार मुफ्त करने की घोषणा कर दी.. और इसपर भी पीठ थपथपाने लगी.. दुर्भाग्य तो देखिए जिस सरकार को ये सोचना चाहिए था असामयिक किसी की मौत ना हो.. वो मौत के बाद का इंतजाम कराने में पर पीठ थपथपा रही है… अब तो आलम ये है जो सूदखोर हैं, वह दर्जनों ऑक्सीजन सिलेंडरों को भरकर अपने घरों में स्टॉक कर रहे हैं… लेकिन जिन्हें वाकई जरूरत है उन्हें एक भी सिलेंडर मुहैया नहीं कराया जा पा रहा है… इसे सरकार की बेबसी कहेंगे या बेशर्मी यह आप तय कीजिए…
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हर कोई अपनी जान बचाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है… विपक्षी पार्टियां सरकार पर उंगलियां तो खड़ी कर रही हैं, लेकिन सिर्फ सोशल मीडिया पर… सियासत के कद्दावर नेता एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का खेल खेल रहे हैं… इस काम से वह सुर्खियां तो बटोर रहे हैं, लेकिन आम जनता को कोई सहूलियत नहीं मिल रही है… देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में तो लोग दरबदर भटकने को मजबूर हैं. मरीज अस्पताल में भर्ती हैं… और अस्पतालों का ऑक्सीजन बीच में ही खत्म हो जा रहा है.
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सूबे के अस्पतालों में बेड नहीं है, ऑक्सीजन के लिए मारामारी मची हुई है, श्मशान और कब्रिस्तान शवों से पटे हुए हैं… इसके बावजूद सरकार के खिलाफ विपक्षी पार्टियां खामोशी अख्तियार किए हैं… कोरोना को लेकर आम लोगों को राहत दिलाने के ध्वस्त सरकारी दावों और सिस्टम पर कांग्रेस, सपा और बसपा बोलने को तैयार नहीं है और न ही सड़क पर उतरने की हिम्मत जुटा पा रहे हैं…
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विपक्षी नेता पर सोशल मीडिया तक नेता बनकर रह गए हैं. थोड़ी प्रियंका गांधी ही हैं जो कोरोना मामले पर योगी सरकार को घेरती नजर आई हैं, जिसका सियासी तौर पर असर भी हुआ है… अखिलेश यादव कोरोना पीड़ित होकर खुद आइसोलेट हैं. दो तीन दिनों से एक आध ट्वीट कर सरकार को घेर लेते हैं. मायावती तो लंबे समय खामोशी अख्तियार करके बैठी हैं.
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कुल मिलाकर ये समझ लीजिए… कि इन दिनों लोगों की सांस पर सियासत खेली जा रही है… बाकि सब भगवान भरोसे… सरकार सो रही है. विपक्ष राजनीति कर रहा है.. जनता सड़क पर मर रही है… लेकिन फाइलों में उत्तर प्रदेश तरक्की कर रहा है.

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