प्रधानमंत्री के ऐतिहासिक फैसले को देखते हुए तीन कृषि कानून बिल वापस होने से किसानों में कही खुशी की लहर तो कही गम की लहर ..काश यही फरमान कुछ महीने पहले कर देते तो शायद सैकड़ो किसानों की जान गवानी पड़ती …
ये तो प्रधानमंत्री जब कोई फैसला लेते है । तो उसके पीछे कोई लॉजिक जरुर होता है ।
चाहे नोटबन्दी का फैसला हो या पाकिस्तान पर पुलवामा हमले का बदला लेना हो ।
सवाल यहां खड़ा होता अगर यही करना था तो इतनी देरी क्यों ।
जो पत्रकार पहले इसी कानून पर बड़े – बड़े फायदे बता ते थे ।क्या अब वही फायदे उल्टे हो जायेगे ।
कही ऐसा तो नही योगी की देन हो क्योंकि 2022 में यूपी में विधासभा का चुनाव है ।
क्योंकि यूपी से ही दिल्ली का रास्ता तय होता है ।
अगर देखा जाय 7 साल में ये पहला फैसला है जो मोदी बैक फुट पर आए है ।
अब समझ मे ये नही आ रहा है । साजिश है या सच्चाई क्योंकि जब कानून बदल जाते है ।तो जुबान बदलने में कोई परहेज नही ।
कही ऐसा तो नही सरकार को डर हो कि अबकी बार हमारी सरकार जनता की रडार पर है ।
वही अगर देखा जाय इससे पहले मोदी ने जब रातो रात नोटबन्दी का फैसला लिया था । उस समय जनता को इतना शॉक नही लगा था ।जितना कृषि कानून बिल वापस लेने में लगा ।
वही कयास लगाए जा रहे है । जब लखीमपुर वाली घटना हुई थी । उस घटना स्थल तक कोई भी नेता वहां तक नही पहुंच पाया था या ये भी कह सकते है शासन प्रशासन ने उन नेताओं को जाने नही दिया था ।
सवाल यहां खड़ा होता है उस घटना में केवल राकेश टिकैत को ही जाने दिया गया था
कही न कही इंडिकेट कर रहा है। कि राकेश टिकैत को ही योगी सरकार ने जाने की अनुमति दी थी ।
तो क्या माना जाय ये क्या कोई सोची समझी चाल है। क्या चुनाव समीप आने का इंतज़ार हो रहा था ।
अगर देखा जाय आज तक मोदी के फैसले ही सर्वमान्य होते थे ।चाहे यूपी के सात नेताओ को अपनी कैबिनेट में लाने का हो ।
या योगी आदित्यनाथ को यूपी का मुख्यमंत्री का बनाने का फैसला हो ।
ऐसे मोदी के कई ऐतिहासिक फैसले है ।
तो क्या माना जाय मोदी है तो मुमकिन है ।
योगी है तो यकीन है ।