पटना. मध्यकाल में जैसे कोई उम्रदराज शहंशाह अपने योग्य पुत्र को विरासत सौंपकर पुरसुकून नजर आता था. रामविलास पासवान (Ramvilas Paswan) भी रुहानी तौर पर वैसा ही महसूस कर रहे होंगे. 74 साल के रामविलास पासवान बीमार हैं
. वे अस्पताल में हैं, फिर भी इस बात से संतुष्ट हैं कि उन्होंने अपना उत्तराधिकार सही हाथों में सौंपा है. उन्हें इस बात की खुशी है कि चिराग पासवान (Chirag Paswan) न केवल उनकी सेवा कर रहे हैं, बल्कि इस विकट स्थिति में पार्टी की जिम्मवारी भी बखूबी निभा रहे हैं. इतना ही नहीं रामविलास पासवान ने चिराग के सभी राजनीतिक फैसलों का समर्थन कर उन्हें बिना विचलित हुए आगे बढ़ने का संदेश दिया है. बिहार की मौजूदा राजनीति के सबसे अनुभवी नेता ने अगर चिराग पासवान को नैतिक और राजनीतिक समर्थन दिया है तो यह बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) के लिए बहुत अहम है. रामविलास पासवान लालू यादव से 9 साल पहले और नीतीश कुमार से 16 साल पहले संसदीय राजनीति में दाखिल हुए थे. जाहिर है उनका राजनाति अनुभव लालू और नीतीश से अधिक है. अगर उन्होंने चिराग के 143 सीटों पर चुनाव लड़ने के फैसले का समर्थन किया है तो यह एनडीए के लिए एक बहुत बड़ा झटका है.
विरासत के योग्य अधिकारी हैं चिराग!
रामविलास पासवान ने स्वास्थ्य कारणों से ही 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था. बढ़ती उम्र का हवाला देकर ही उन्होंने 37 साल के चिराग पासवान को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया था. रामविलास पासवान के भाई रामचंद्र पासवान और पशुपति कुमार पारस को चिराग से कहीं ज्यादा राजनीतिक अनुभव था. लेकिन उन्होंने सोच समझ कर ही चिराग को पार्टी की जिम्मेदारी दी. चिराग पासवान ने भी नीतीश कुमार की तरह इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. 2014 में ही उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय दे दिया था. चिराग के जोर देने पर ही रामविलास पासवान ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा का चुनाव लड़ा था. चिराग के इस फैसले ने लोजपा की एक नया जीवन दिया था. उसके छह सांसद लोकसभा में पहुंचे थे. तब से ही रामविलास पासवान चिराग की राजनीतिक सूझबूझ के कायल हैं. पिछले कुछ समय से जब चिराग, नीतीश कुमार पर हमले कर रहे थे तब रामविलास पासवान चुप थे. उन्होंने खुल कर कभी चिराग का समर्थन नहीं किया. लेकिन अब वे चिराग के साथ मजबूती से खड़े हैं. 15 साल बाद फिर वही आत्मसम्मान की लड़ाई
चिराग पासवान ने 143 सीटों पर चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर कर जदयू से निर्णायक लड़ाई छेड़ दी है. चिराग पासवान इस बात से आहत हैं कि एनडीए का हिस्सा होने के बाद भी नीतीश कुमार ने उनकी लगातार अनदेखी की. क्या चिराग के 143 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला एक रिवेंज गेम है ? क्या 15 साल बाद इतिहास फिर अपने को दोहराएगा ? फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में रामविलास पासवान ने यूपीए में रहते हुए भी लालू के खिलाफ चुनाव लड़ा था. 2004 में लालू के विरोध के कारण ही रामविलास पासवान रेल मंत्री नहीं बन पाये थे. पासवान ने इसे आत्मसम्मान का सवाल बना लिया था. उन्होंने फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से समझौता किया लेकिन राजद के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार कर लालू यादव का खेल बिगाड़ दिया. लोजपा ने कांग्रेस की सीटें छोड़ कर 178 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. इसकी वजह से लालू के केवल 75 विधायक ही जीते और राजद को सत्ता से बेदखल होना पड़ा. इसी नक्शेकदम पर क्या चिराग पासवान भी नीतीश कुमार का खेल बिगाड़ना चाहते हैं ? चिराग भाजपा के लिए 100 सीटें छोड़ कर 143 पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे रहे हैं. अब तो रामविलास पासवान ने भी उनके फैसले पर मुहर लगा दी है. यानी चिराग को अपनी जंग के लिए और हौसला मिल गया है.