2ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी यहियागंज में आज कबीर दास जी के जन्मोत्सव के अवसर पर विशेष दीवान सजाया गया दीवान की शुरुआत सायं 7:00 बजे रहिरास साहिब के पाठ से हुई।
पश्चात हजूरी रागी भाई गुरमीत सिंह एवं भाई मनप्रीत सिंह ने शबद कीर्तन द्वारा संगतों को निहाल किया
कल दिनांक 25 जून 2021 को ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी यहियागंज में सिखों के 6 वें गुरु श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी का 426 वाँ प्रकाश पर्व प्रातः 5:00 बजे से 2:00 बजे तक बड़ी श्रद्धा एवं सत्कार के साथ मनाया जाएगा
इस अवसर पर गुरुद्वारा साहब को विशेष प्रकार के फूलों से एवं लाइटों से सजाया जाएगा
गुरुद्वारा सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताया कि इस अवसर पर हजूरी रागी गुरमीत सिंह एवं भाई मनप्रीत सिंह व भाई तेजिंदर सिंह एवं भाई जसवीर सिंह लाजपत नगर वाले शबद कीर्तन द्वारा संगतो को निहाल करेंगे।
हेड ग्रंथी ज्ञानी परमजीत सिंह श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी के जीवन पर प्रकाश डालेंगे एवं सरबत के भले के लिए अरदास करेंगे
इस अवसर पर श्रद्धालुओं को मिस्सी रोटी प्याज एवं लस्सी का लंगर वितरित किया जाएगा ।
गुरुद्वारा सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताया गुरुद्वारा परिसर को पूर्ण रूप से सैनिटाइज किया गया है प्रशासन द्वारा बताए गए संपूर्ण नियमों का पालन करने की व्यवस्था की गई है।
गुरु हरगोबिंद साहिब जी का जीवन परिचय, वाणी, गुरूगददी आदि
श्री गुरु अर्जुन देव जी की शहीदी के बाद आपने जब देखा कि मात्र शांति के साथ कठिन समय ठीक नहीं हो सकता तो दुष्ट हाकिमों के साथ लोहा लेने के लिए तथा जुल्म को नष्ट करने के लिए गुरूगददी से बिराजते समय दो तलवारें एक मीरी की तथा दूसरी पीरी की सजाई, जिसका अर्थ था कि मीरी तेग धर्म की रक्षा तथा पीरी शांति व भक्ति को प्रकट करेगी। गुरू हरगोबिंद साहिब जी महाराज सिक्खों के छठे गुरू है। पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज द्वारा इन्हें छठे गुरु के रूप में गुरूगददी सौपी थी।
गुरु हरगोबिंद साहिब जी का जीवन परिचय
नाम —- श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी महाराज
जन्म —- 1 आषाढ़ वदी एकम वि. सं. 1652 (16 जून 1595 ई.)
जन्म स्थान —- श्री वडाली साहिब, जिला अमृतसर
पिता —- श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज
माता —- माता गंगा जी
पत्नी —- माता नानकी, महादेवी, दामोदरी जी
पुत्र —- बाबा गुरूदित्ता, बाबा सूरजमल, बाबा अनी राय, बाबा अटल राय, गुरू तेगबहादुर जी
सुपुत्री —- बीबी वीरो जी
गुरूगददी —- ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी, सं. 1633 वि. (11 जून 1606 ई.)
अकाल तख्त की रचना आषाढ़ शुक्ल 10वी वि.सं. 1663 को ही जहां से युद्ध के लिए प्रार्थना करके सैनिक जालिमों पर चढ़ाई करते थे। शाही ठाठ बाठ में रहते थे। सिर पर कलगी तथा शस्त्रों से सदा तैयार रहते थे और घोड़े की सवारी करते थे। अकाल तख्त साहिब की रचना करके महाराज की घोड़ों व शस्त्रों में अधिक रूचि रहने लगी। जो गुरुसिख आपको घोड़े व शस्त्र भेंट करता था आप उस पर अधिक प्रसन्न होते थे।
एक दिन शेर का शिकार खेलने गये। घने जंगल में एक शेर गर्जना करते हुए लपक पड़ा। बादशाह ने बहादुर साथियों से कहा कि शिकार करो पर कोई भी डरता आगे न बढ़ा। जब गुरु जी से विनती की तो आप ढाल तलवार लेकर शेर का सामना करने लगे। तलवार शेर के पेट में जा धंसी और वह चित्त हो गया। यह देखकर बादशाह बहुत प्रभावित हुआ
गुरु जी को दूसरे युद्ध गांव रोहेला में फतेह प्राप्त हुई तो आपने वहां एक गड्ढा खुदवाकर उसमें सूबा अब्दुल खां और उसके सथियों के शव दबा दिये और मिट्टी डलवाकर एक बड़ा चबूतरा बनवाया उस पर विराजमान होकर पास ही अपने शहीद साथियों का संस्कार करवाकर राख व्यास में प्रवाहित करवा दी। जिस चबुतरे पर गुरु जी बैठते थे उसका नाम दमदमा साहिब रखा गया। दीवान सजाकर गांव में एक सुंदर नगर तैयार करवाने का विचार किया।
गुरु जी ने व्यास नदी के किनारे एक नया नगर बसाने की तैयारी शुरू कर दी। जब बाबा बुड्ढा जी को समाचार मिला तो भाई गुरदास आदि प्रमुख सिक्खों को साथ लेकर आ पहुंचे। सब लोग बहुत प्रसन्न हुए तथा नये नगर का नाम हरिगोविंदपुर रखने की विनती की जिसे महाराज ने स्वीकार कर लिया और इस नये नगर का नाम हरिगोविंदपुर रखा गय ।
गुरुदीत्ता जी उदासीन हो गये थे इसलिए गुरु जी ने उनके पुत्र अपने पौत्र हरिराय जी को गुरु गद्दी सौंप दी तथा स्वयं कीरतपुर में ही ज्योति ज्योत समा गये।