12 साल बाद मां बनी महिला को जीवन की खुशियां नसीब नहीं हुई। मां बनने के तनाव में महिला की याददाश्त चली गई। चार महीने बाद वह घर से 70 किलोमीटर दूर पुलिस को लावारिस हालत में मिली। पुलिस ने उसे लावारिस महिलाओं के लिए बने आश्रय गृह में रख दिया। जहां चार महीने इलाज के बाद उसकी हालत में सुधार हुआ है। महिला ने घर का पता बताया। परिजन आए। महिला को पहचाने। महिला के दूधमुहें बच्चे के पास वापस लेकर चले गए।
देवरिया के रुद्रपुर की रहने वाली महिला सुशीला देवी पुलिस को नवंबर के पहले हफ्ते में चिलुआताल के पास विक्षिप्त हालत में मिली। महिला कूड़े के ढेर के पास मिली थी। वह चार दिन से वहीं पड़ी थी। किसी ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी। महिला की मानसिक हालत देखकर पुलिसकर्मी ने इलाज कराने का फैसला किया। उन्होंने सबसे पहले महिला को जिला अस्पताल फिर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया। वहां से डिस्चार्ज होने के बाद महिला को मातृछाया फाउंडेशन के सुपुर्द कर दिया। यह संस्था लावारिस व मानसिक विक्षिप्त महिलाओं को आश्रय देती है।
चार महीने चला इलाज
महिला की हालत मानसिक हालत बहुत खराब थी। उसका इलाज चार महीने चला। इलाज से फायदा हुआ। फरवरी के पहले हफ्ते में महिला आश्रयगृह में लोगों को पहचानने लगी। वह अपने घर को याद करने लगी। जिसके बाद काउंसलिंग की गई तो महिला ने घर का पता व पति का नाम बताया। जिसके बाद परिजनों से संपर्क कर उन्हें महिला के महिला को उनके सुपुर्द कर दिया गया।
जन्म के आठ महीने बाद मां से मिलेगा बच्चा
परिजनों ने बताया कि सुशीला की शादी रूद्रपुर के गोपालपुर बगही निवासी बुद्धु प्रसाद से वर्ष 2008 में हुई। शादी के बाद बच्चा नहीं हो रहा था। इससे महिला तनाव में आ गई। वह अवसाद में रहने लगी। दो जुलाई 2020 को सुशीला मां बनी। सामान्य प्रसव से सरकारी अस्पताल में उसने उसने बेटे को जन्म दिया। इसके बाद से ही महिला मानसिक तौर पर असामान्य हो गई। अगले दिन से वह अस्पताल से लापता हो गई। इसको लेकर परिजनों व अस्पताल प्रबंधन ने पुलिस को सूचना दी। परिजनों ने कई दिनों तक तलाश की। थक हार कर वह शांत हो गए।
पोस्टपार्टम साइकोसिस का है मामला
मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. धर्मेंद्र कमला ने बताया कि इसे पोस्टपार्टम साइकोसिस कहते हैं। यह रेयर डिजीज है। गर्भावस्था काल में महिलाओं में शारीरिक व मानसिक तौर पर कई बदलाव आते हैं। अगर महिला मानसिक तोर पर कमजोर है तो वह इसका शिकार हो सकती है। इसमें प्रसूता की मानसिक अवस्था बिगड़ जाती है। उसकी याददाश्त चली जाती है। वह अपने बच्चे को नहीं पहचानती। यह बेहद खतरनाक स्थिति होती है। अनजाने में वह बच्चे का अहित भी कर सकती है। आमतौर पर प्रसव के दौरान ही इसके संकेत मिल जाते हैं।
20 हजार में आता है एक मामला
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के गाइनेकोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर कुमार गुप्ता ने बताया कि पोस्टपार्टम साइकोसिस के मामले 20 हजार में एक प्रसव में सामने आते हैं। मेडिकल कॉलेज में पूरे साल में एक या दो मामले ऐसे आते हैं। यह प्रसव के छह हफ्ते के अंदर कभी भी उभर सकता है। समय से इलाज न मिले तो प्रसूता मानसिक विक्षिप्त से पागलपन तक जा सकती है। इसे पहचानना आसान है। प्रसव के दौरान भर्ती महिला से समय , स्थान व व्यक्ति की पहचान कराई जाती है। प्रसव पीड़ा के दौरान भी महिला इनमें से किसी भी सवाल का सही जवाब दे रही है तो वह मानसिक तौर पर स्वास्थ्य है। दरअसल प्रसव के दौरान महिला के शारीरिक व मानसिक बदलाव होते हैं। वह बच्चे के जन्म के रोमांच व भविष्य की चिंता के तनाव में रहती है। कई बार तनाव दिमाग पर हावी हो जाता है।