जीवन के 16 संस्कारो में क्यों जरूरी है तीसरा सीमंतोन्नयन संस्कार l


क्या है इसका आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रहस्य ?
तीसरा संस्कार – सीमंतोन्नयन संस्कार

जब बच्चा गर्भ में 6 महीने का हो जाता है तो सीमंतोन्नयन संस्कार अवश्य ही करना चाहिए । क्योंकि छठे महीने में माँ और बच्चे की जान को खतरा रहता है । तथा गर्भ पात होने की संभावना लगातार बनी रहती है । क्योंकि गर्भ के उपर छठे महीने में पापी ग्रह शनि का प्रभाव रहता है । तथा शनि की नकारात्मक किरणों का प्रभाव बच्चे के ऊपर न पड़े इसलिए शनि की पूजा करनी चाहिए । तथा शनि के वैदिक मंत्रो का जाप करना चाहिए । और शनि देव का दान भी करना चाहिए । उस समय गर्भवती महिला को काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए । शनि का दान करना चाहिए ।

अगर सीमंतोन्नयन संस्कार को छठे महीने नहीं कर पाते हैं तो आठवें महीने में अवश्य ही करना चाहिए । क्योंकि आठवें महीने में बच्चे का हृदय माँ के हृदय के साथ जुड़ा होता है । तथा बच्चा गर्भ में माँ के ह्रदय के सभी विचारों को अपने अंदर संचित कर रहा होता है । तथा उस समय बच्चा क्रूर ग्रह सूर्य से प्रभावित होता है । आठवें महीने में बच्चे पैदा होने पर बहुत कम बच पाते हैं । अगर बच जाये तो जीवन भर स्वस्थ नहीं रहते हैं । इस समय सूर्य की उपासना करनी चाहिए तथा सूर्य के वैदिक मंत्रों का जाप करना चाहिए । और सूर्य का दान भी करना चाहिए । इसके अलावा गर्भवती महिला को महरून रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए तथा सूर्य को जल भी चढ़ाना चाहिए ।

यह वैज्ञानिक आधार पर सत्य हो चुका है कि गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास ग्रहों की किरणों के आधार पर ही होता है । जिस प्रकार उद्विज योनियों के अंडे को हीट के द्वारा पक्षियों द्वारा परिपक्व किया जाता है । अगर पक्षी अपने अंडे को गर्मी की किरणें न दें तो अंडे के अंदर बच्चा विकसित नहीं होता है । इसी सिद्धान्त पर माँ के गर्भ में बच्चे का विकास ग्रहों की किरणों से विकसित होता है । अगर कोई ग्रह गर्भ के समय नीच अवस्था में होता है तो बच्चे का वो अंग परिपक्व नहीं होता है । जिस प्रकार नग्न दुर्योधन को जब गांधारी ने देखा तो दुर्योधन वज्र का हो गया था ।
इसलिए सीमंतोन्नयन संस्कार के करने से गर्भ के अंदर पल रहे बच्चे पर ग्रहों की किरणों को संतुलित किया जाता है ।

डॉ एच एस रावत धर्मगुरु

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