वैक्सीन आने के मैं और अली शादी का प्लान करेंगे : रिचा चड्ढा


एक समर्थ अभिनेत्री के रूप में पहचानी जानेवाली रिचा चड्ढा इन दिनों चर्चा में है बायोपिक शकीला से।

साउथ की अडल्ट स्टार शकीला की जीवनी पर आधारित यह फिल्म हिंदी समेत चार अन्य भाषाओं में 1000 स्क्रीन्स पर रिलीज होने जा रही है।

इस बातचीत में रिचा अपनी फिल्म, दर्शकों के थिएटर आने, कोरोना काल, अली से उनकी शादी और इंडस्ट्री को लेकर पनपी निगेटिविटी पर बात करती हैं।

कोरोना काल में तकरीबन 9 महीनों बाद आपकी फिल्म शकीला थिएटर का मुंह देख पाएगी, क्या इस बात की फिक्र है कि ऑडियंस आएगी?


-मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। सब चीजें न्यू-नार्मल तरीके से हो रही हैं। मैं और ज्यादा खुश होती, अगर शकीला का प्रमोशन मैं बड़े और विशाल पैमाने पर कर पाती। इस समय मैं जूम और कॉल्स पर इंटरव्यूज दे रही हूं।

यह जरूरी भी है कि सब लोग एक सुरक्षा कवच बनाकर रखें। फिल्म के थिएटर में रिलीज होने की बहुत बड़ी वजह यह भी है

कि यह हिंदी के अलावा 4 भाषाओं में रिलीज हो रही है। यह चिंता तो जाहिर तौर पर है ही कि दर्शक आएंगे या नहीं। मगर उसका हम कुछ कर नहीं सकते हैं।

मेकर्स को फिल्म मार्च में रिलीज करनी थी। अब इस फिल्म को रोक कर रखना मुश्किल है। इसलिए इसे दिसंबर में अब रिलीज किया जा रहा है।

जहां कोरोना का संक्रमण कम होगा, वहां लोग फिल्म देखने जाएंगे। कल रात को मैं खुद एक फिल्म देखकर आई, जिससे थिएटर में लिए जानेवाले प्रीकॉशंस का जायजा ले सकूं।
शकीला को पर्दे पर उतारने में आपको सबसे ज्यादा मुश्किल क्या लगा?


-परफॉरमेंस के नजरिए से देखूं, तो कुछ भी मुश्किल नहीं था। मगर रोल की डिमांड पर वजन बढ़ाना एक बड़ी चुनौती थी। मैंने बहुत अनहेल्दी तरीके से वजन बढ़ाया। खूब तला-भुना मैदा खाया, वो चीजें भी खाईं, जिससे मुझे एलर्जी थी।

वजन बढ़ाना आसान था, मगर घटाना उतना ही मुश्किल। मैंने शकीला को समझने के लिए उसकी साइकी में जाने की कोशिश की। वह साउथ की अडल्ट स्टार सिल्क स्मिता की तरह महत्वाकांक्षी नहीं थी।

उन्हें तो बस इतना कमाना था कि अपने परिवार का पेट पाल पाती। सिल्क स्मिता के गुजरने के बाद जो खाली जगह थी, उसके जरिए वह तेजी से स्टारडम की सीढिय़ां चढ़ गईं। उन्होंने अपने परिवार को भाई-बहनों के बच्चों को संभाला।

उनकी पढ़ाई पूरी करवाई, मगर उसी परिवार ने उन्हें त्याग दिया। मैं उनके इसी पहलू को दर्शाना चाहती थी।
फिल्म की तुलना लगातार डर्टी पिक्चर से हो रही है?
-मुझे आश्चर्य हो रहा है, क्योंकि डर्टी पिक्चर करीबन 10 साल पहले रिलीज हुई थी। इसलिए अचरज में हूं कि लोगों के दिमाग में अभी तक वह फिल्म चल रही है।

बाकी तुलना हो रही है तो किसी बुरी फिल्म से नहीं हो रही है, यह बहुत अच्छी बात है। इस कंपेरिजन को अब रोका नहीं जा सकता।

पंकज त्रिपाठी के साथ दोबारा काम करने का अनुभव कैसा रहा?
-उनका रोल बहुत फनी और मजेदार है। साउथ के सुपर स्टार के रोल को निभाते हुए उन्होंने इसे अलहदा अंदाज दिया। वे जितने शरीफ हैं, उतने ही फिल्म में बदमाश नजर आते हैं।

एक अभिनेता के रूप में उनका शार्प ऑबजर्वेशन उनके बहुत काम आया। असल जिंदगी में भी ऐसा होता है। हम लोग किसी समझदार व्यक्ति से मिलते हैं,

तो उनके आदर्श ऊंचे होते हैं, मगर उनके करीब जाओ तो वे एक ऐसी बेकार बात कह देंगे कि उनका असली चरित्र उजागर हो जाता है। ट्रेलर में दिखाया है

कि वे लड़की से कहते हैं तुम यह नहीं पहनोगी, क्योंकि तुम्हारी ब्रा का स्ट्रेप दिख रहा है, मैं फैमिली फिल्में करता हूं और मेरी इमेज खराब हो जाएगी,

मगर जैसे ही वह उनके पास अकेली जाती है, तो वे कहते हैं कि हम आउटडोर जा रहे हैं और आप अपनी मां को नहीं लाओगी। उन्होंने जब इस सीन को कंसीव किया, तो मैं यही सोच रही थी

कि ऐसा अनुभव उन्हें कभी न कभी जरूर हुआ होगा।


कोरोना काल आपके लिए कितना मुश्किल साबित हुआ?
-चुनौती यही थी कि हर तरफ से बस बुरी खबरें ही आ रही थी। मेरे करीबी लोगों में और दुनिया में भी बहुत लोग कोरोना में गुजरे। बहुत बुरा और भारी वक्त था।

इसके अलावा इस समय हम सबको सोचने का वक्त मिला। हम थोड़ा ठहरे, वरना तो भागे जा रहे थे। खास कर हमारी इंडस्ट्री में तो शूटिंग, ट्रैवलिंग और भागम-भाग लगी रहती है।

इस दौरान मैंने खाना बनाना, खुद को और दूसरो को खुश रखना सीखा।

इसी कारण आपकी और अली फजल की शादी भी टली? अब कब प्लान है?
-मार्च के दूसरे सप्ताह में ही हमने तय कर लिया था कि हम शादी पोस्टपोन कर देंगे।

जाहिर है महामारी में लोग देश-विदेश से ट्रैवल करके कैसे आते? अब हम तो यही सोच रहे हैं कि इस महामारी की वैक्सीन आ जाए तो चिंता कम हो जाएगी,

क्योंकि उसके बाद ही लोग सेफ फील कर पाएंगे। अब जब वैक्सीन आएगी, उसका सफल ट्रायल होगा, तभी हम कुछ प्लान कर पाएंगे।


पिछले दिनों इंडस्ट्री को लेकर पनपी निगेटिविटी के बारे में क्या कहना चाहेंगी?

-यह तो पूरी तरह एक मैनिफेक्चरर नरेटिव था। अब एक-एक करके सबको रिहा किया जा रहा है। उस वक्त सब लोग घर पर बैठे हैं

और आपको एक बंधी-बंधाई ऑडियंस मिल जाती है। अब आप उन्हें कोई भी पट्टी पढ़ा दें। लोग होते भी हैं ढोंगी हैं। उन्हें जिससे टीआरपी मिलती है, वह दिखाते हैं।

अब वह टीआरपी असली है या नकली बाद में जाकर पता चलता है। उन्हें एक जरिया मिल गया है कि हम यह करेंगे, वह करेंगे और इससे हम खबरें दिखाएंगे।

उन्हें एक फॉर्मूला मिल जाता है, जिसे वे घसीटे चले जाते हैं। मगर मुझे लगता है इस पर अब इससे ज्यादा और सोचने की जरूरत भी नहीं है।

यह एक दौर है, जो चला जाएगा। मगर, हां उन लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए इसे मुद्दा बनाया, वे लोग खुद ही एक्सपोज हो गए।

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