लखनऊ में गुरु अमरदास जी का प्रकाश पर्व श्रद्धा पूर्वक मनाया गया।


ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी यहियागंज में 25 मई को गुरु अमरदास जी का प्रकाश पर्व प्रातः5:00 बजे से 10:00 बजे तक बड़ी सादगी एवं श्रद्धा पूर्वक मनाया गया।

गुरुद्वारा सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताया कि इस अवसर पर प्रातः 5:00 बजे सुखमनी साहिब जी का पाठ हुआ
पश्चात हजूरी रागी द्वारा शबद कीर्तन के उपरांत ज्ञानी परमजीत सिंह ने सरबत के भले के लिए अरदास की।

समस्त कार्यक्रम का ऑनलाइन प्रसारण किया गया।

डॉ गुरमीत सिंह ने सभी संगतो गुरु महाराज के प्रकाश पर्व पर ऑनलाइन शुभकामनाएं भेंट की।

गुरु अमरदास जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए हेड ग्रंथी ज्ञानी परमजीत सिंह ने कहा कि
गुरू अमर दास जी सिख पंथ के एक महान प्रचारक थे। जिन्होंने गुरू नानक जी महाराज के जीवन दर्शन को व उनके द्वारा स्थापित धार्मिक विचाराधारा को आगे बढाया।

तृतीय नानक’ गुरू अमर दास जी का जन्म बसर्के गिलां जो कि अमृतसर में स्थित है, में वैसाख सुदी १४वीं (८वीं जेठ), सम्वत १५३६ को हुआ था।

गुरू अंगद साहिब ने गुरू अमरदास साहिब को तृतीय नानक’ के रूप में मार्च १५५२ को ७३ वर्ष की आयु में स्थापित किया। गुरू अमरदास साहिब जी की भक्ति एवं सेवा गुरू अंगद साहिब जी की शिक्षा का परिणाम था। गुरू साहिब ने अपने कार्यों का केन्द्र एक नए स्थान गोइन्दवाल को बनाया। यही बाद में एक बड़े शहर के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहां उन्होंने संगत की रचना की और बड़े ही सुनियोजित ढंग से सिख विचारधारा का प्रसार किया। उन्होंने यहां सिख संगत को प्रचार के लिए सुसंगठित किया। विचार के प्रसार के लिए २२ धार्मिक केन्द्रों- मंजियां’ की स्थापना की। हर एक केन्द्र या मंजी पर एक प्रचारक प्रभारी को नियुक्त किया। जिसमें एक रहतवान सिख अपने दायित्वों के अनुसार धर्म का प्रचार करता था। गुरु अमरदास जी ने स्वयं एवं सिख प्रचारकों को भारत के विभिन्न भागों में भेजकर सिख पंथ का प्रचार किया।

उन्होंने गुरू का लंगर’ की प्रथा को स्थापित किया और हर श्रद्धालु के लिए पहले पंगत फिर संगत को अनिवार्य बनाया।

गुरु अमरदास जी ने सतीप्रथा का प्रबल विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह को बढावा दिया और महिलाओं को पर्दा प्रथा त्यागने के लिए कहा। उन्होंने जन्म, मृत्यू एवं विवाह उत्सवों के लिए सामाजिक रूप से प्रासांगिक जीवन दर्शन को समाज के समक्ष रखा। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक धरातल पर एक राष्ट्रवादी व आध्यात्मिक आन्दोलन को उकेरा। इस विचारधारा के सामने मुस्लिम कट्टपंथियों का जेहादी फलसफा था। उन्हें इन तत्वों से विरोध भी झेलना पड़ा। उन्होंने संगत के लिए तीन प्रकार के सामाजिक व सांस्कृतिक मिलन समारोह की संरचना की। ये तीन समारोह थे-दीवाली, वैसाखी एवं माघी।

गुरू अमरदास साहिब जी ने गोइन्दवाल साहिब में बाउली का निर्माण किया जिसमें ८४ सीढियां थी एवं सिख इतिहास में पहली बार गोइन्दवाल साहिब को सिख श्रद्धालू केन्द्र बनाया। उन्होने गुरू नानक साहिब एवं गुरू अंगद साहिब जी के शबदों को सुरक्षित रूप में संरक्षित किया। उन्होने ८६९ शबदों की रचना की। उनकी बाणी में आनन्द साहिब जैसी रचना भी है। गुरू अरजन देव साहिब ने इन सभी शबदों को गुरू ग्रन्थ साहिब में अंकित किया।

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