10 मार्च: ये वो तारीख़ थी, जिसका सभी को बेसब्री से इंतज़ार था। विश्व की सबसे बड़ी पार्टी समक्ष थी। भारत का सबसे बड़ा संगठन भी तैयार था। केंद्र सरकार के बड़े-बड़े नेता व प्रदेश की पूरी ताकत साथ थी। जिन्हें लोकतंत्र के ‘चौथे स्तंभ’ का भी सहारा था। और इन सबसे अकेला लड़ रहा था ” Akhilesh Yadav
हार-जीत तो मुक़ाबले में होता ही है। लेकिन, क़भी-क़भी तारीफ़ उसकी होती है, जो बेहतर लड़ता है। बेशक़! वो जीत नहीं पाया। बेशक़! वो अपने मुद्दों को समझा नहीं पाया। बेशक़! वो अकेला था। मग़र, पूरे प्रदेश को लोहा मनवा दिया कि एक ‘नेता’ कैसा होता है! एक ऐसा ‘मेनिफेस्टो’ तैयार किया, जिसमें महिला, किसान, कर्मचारी, युवाओं सहित सभी वर्गों की बेहतरी के मुद्दे थे।
जीत क्या है? उसके मायने समझने चाहिये।
• सत्ता दल के एक दर्जन से अधिक मंत्री चुनाव हारे।
• प्रदेश के उप मुख्यमंत्री अपनी सीट नहीं बचा पाए।
• लगभग 50 से अधिक सीटों पर मुक़ाबला कांटे का रहा।
• चुनाव को पूरी तरह से दो पक्षों में बदल दिया।
• सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनकर उभरे।
• दो राष्ट्रीय पार्टियों को नेस्तनाबूद कर दिया।
शायद, ये बातें आप लोगों को अभी समझ न आएं, लेकिन यह एक ऐतिहासिक चुनाव था। जिसे हमने जिया और महसूस भी किया ।